भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) का दौर तेजी से बढ़ रहा है। 2025 में यह क्रांति न केवल ऑटोमोबाइल उद्योग को बदल रही है, बल्कि पर्यावरण को बचाने और भविष्य को बेहतर बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ा रही है। आइए, जानते हैं कि कैसे इलेक्ट्रिक वाहन भारत के ऑटो भविष्य को नई दिशा दे रहे हैं।
इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग
2024 में भारत में लगभग 13.7 लाख इलेक्ट्रिक वाहन बिके, और 2025 में यह संख्या 21-24 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है। दोपहिया और तिपहिया वाहन इस बाजार में सबसे आगे हैं, जिनकी बिक्री 2024 में क्रमशः 7 लाख और 6 लाख यूनिट रही। विशेषज्ञों का मानना है कि 2027 तक EV बाजार 35-40% की दर से बढ़ेगा, और 2030 तक 1 करोड़ वाहन बिक सकते हैं। यह तेजी दर्शाती है कि भारतीय ग्राहक अब पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं और सस्ते, टिकाऊ परिवहन विकल्प चुन रहे हैं।
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्य EV को अपनाने में अग्रणी हैं। खासकर दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या बढ़ रही है, जो शहरों में प्रदूषण कम करने में मदद कर रही है।
सरकारी समर्थन और नीतियां
भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है। FAME II योजना और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम ने स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित किया है। 2024 में सरकार ने 35,000 डॉलर से अधिक कीमत वाले EVs पर आयात शुल्क को 100% से घटाकर 15% कर दिया, जिससे विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने का मौका मिला।
2025 के बजट में बैटरी उत्पादन के लिए कस्टम ड्यूटी में छूट दी गई, जिससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। PM E-Drive योजना के तहत 10,900 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है, जिसमें दोपहिया, तिपहिया और बसों के लिए सब्सिडी शामिल है। दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में प्रति kWh बैटरी पर 5,000 रुपये की सब्सिडी और 100% रोड टैक्स छूट भी दी जा रही है। ये कदम EVs को सस्ता और आकर्षक बना रहे हैं।
चुनौतियां जो रास्ते में हैं
EV क्रांति के बावजूद कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। सबसे बड़ी समस्या है चार्जिंग स्टेशनों की कमी। भारत में केवल 300 EV चार्जिंग स्टेशन हैं, जबकि पेट्रोल पंपों की संख्या 70,000 है। इससे लंबी दूरी की यात्रा में दिक्कत होती है। सरकार ने 22,100 चार्जर स्थापित करने की योजना बनाई है, लेकिन इसे लागू करने में समय लगेगा।
दूसरी चुनौती है EVs की कीमत। सामान्य पेट्रोल कार की तुलना में EV 20-30% महंगे हैं। उदाहरण के लिए, मारुति सुजुकी स्विफ्ट की कीमत 6-7 लाख है, जबकि टेस्ला जैसी EVs की शुरुआत 60 लाख से होती है। बैटरी की लागत, जो EV की कीमत का आधा हिस्सा है, इसे और महंगा बनाती है। इसके अलावा, लिथियम-आयन बैटरी के लिए भारत आयात पर निर्भर है, क्योंकि देश में लिथियम भंडार सीमित हैं।
कुशल श्रमिकों की कमी और EVs की कम रेंज (जैसे, Ather EV की 120 किमी रेंज बनाम स्विफ्ट की 600 किमी) भी उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय है।
भविष्य की संभावनाएं
2025 में भारत का EV भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है। सरकार ने 2030 तक 30% निजी कारों, 70% वाणिज्यिक वाहनों और 80% दोपहिया व तिपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक करने का लक्ष्य रखा है। इससे न केवल प्रदूषण में 37% की कमी आएगी, बल्कि शहरों की हवा भी साफ होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 भारत में हैं, और EVs इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
कंपनियां जैसे टाटा, महिंद्रा, BYD और हुंडई नए मॉडल लॉन्च कर रही हैं, जिनमें लंबी रेंज और तेज चार्जिंग की सुविधा होगी। 2030 तक EV उत्पादन 13.3 लाख यूनिट तक पहुंच सकता है, जो कुल यात्री वाहनों का 20% होगा।
इलेक्ट्रिक वाहन भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं। सरकारी समर्थन, बढ़ती मांग और पर्यावरण के प्रति जागरूकता इस क्रांति को गति दे रही है। हालांकि, चार्जिंग स्टेशनों की कमी और उच्च लागत जैसी चुनौतियों को दूर करना जरूरी है। 2025 में भारत न केवल ऑटो उद्योग में बल्कि स्वच्छ और हरित भविष्य की दिशा में भी एक बड़ा कदम उठा रहा है।
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